पेट्रोलियम उत्पादों में मिलावट रोकने के मामले में तेल कंपनियों की लापरवाही का ही नतीजा है कि तेल माफियाओं की हिम्मत दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। मंगलवार को मालेगांव में अपर जिलाधिकारी यशवंत सोनवाने की दिनदहाड़े हत्या इसका जीता जागता प्रमाण है। पेट्रोलियम मंत्रालय और सरकारी तेल कंपनियों ने पेट्रो उत्पादों में मिलावट रोकने के लिए यदि गंभीर कोशिश की होती तो ऐसे हादसों को रोका जा सकता था। सूत्रों का कहना है कि तेल उत्पादों में मिलावट रोकने की मुहिम पिछले कुछ वर्षो में काफी सुस्त हो गई है। इसके पीछे मुख्य वजह यह है कि सरकार तेल कंपनियों पर मिलावट रोकने के लिए दबाव नहीं बना पा रही है। तेल कंपनियों का तर्क है कि वे लगभग सभी पेट्रोलियम उत्पाद घाटे पर बेच रही हैं। उन्हें अपनी विस्तार योजनाओं पर भी बहुत ज्यादा राशि खर्च करनी पड़ रही है। ऐसे में उनके पास मिलावट रोकने जैसे कामों के लिए धन नहीं है। इस वजह से ही पेट्रोल, डीजल व केरोसिन की ढुलाई करने वाली तेल कंपनियों के वाहनों में जीपीएस लगाने की योजना धीमी रफ्तार से चल रही है। वर्ष 2005 में दो साल के भीतर तेल कंपनियों के सभी ढुलाई वाहनों में जीपीएस लगाने की योजना बनी थी, लेकिन यह काम अभी तक पूरा नहीं हो पाया है। सूत्रों का कहना है कि पिछले पांच वर्षो में पेट्रोल व डीजल की कीमत बढ़ने की वजह से इनमें केरोसिन मिलाने की घटनाएं बढ़ी हैं। पांच वर्ष पहले मुंबई में डीजल 30 रुपये और पेट्रोल 38 रुपये प्रति लीटर के करीब था, जबकि केरोसिन नौ रुपये प्रति लीटर था। अब डीजल 42 रुपये और पेट्रोल 63 रुपये प्रति लीटर के करीब है, जबकि केरोसिन 12.32 रुपये प्रति लीटर है। कीमत में अंतर बढ़ने से केरोसिन मिलाना ज्यादा मुनाफे का धंधा हो गया है। मिलावट रोकने के लिए वर्ष 1993 के बाद से अभी तक पांच बार विभिन्न तरह की मार्कर प्रणाली शुरू की गई। हर बार सरकार का यह दावा रहा है कि इससे मिलावट पूरी तरह से बंद हो जाएगी। मगर नतीजा हमेशा ही उल्टा साबित हुआ। ब्रिटिश कंपनी एंथ्रेक्स के मार्कर का इस्तेमाल वर्ष 2006 में शुरू हुआ। मगर दो साल के भीतर ही इसकी अनुपयोगिता को देखते हुए पेट्रोलियम मंत्रालय को इसे बंद करना पड़ा। अब घरेलू मार्कर की तलाश जारी है। पेट्रोलियम मंत्रालय ने केरोसिन मिलावट की स्थिति जानने के लिए वर्ष 2005 में प्रमुख इकोनॉमिक थिंक टैंक एनसीएईआर से अध्ययन करवाया था। इस रिपोर्ट में बताया गया कि राशन की दुकानों पर बिकने वाला 38 फीसदी केरोसिन बाहर बेच दिया जाता है। रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा गैरकानूनी मिलावट व बिक्री (50 फीसदी से ज्यादा) बिहार, चंडीगढ़, दिल्ली, झारखंड, पंजाब व उड़ीसा में होती है। वहीं हरियाणा, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश में राशन दुकानों के लिए आवंटित 40 फीसदी तक केरोसिन बाहर बेच दिया जाता है।
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