Thursday, January 13, 2011

कारखानों के चक्के हुए जाम

पिछले एक महीने से महंगाई को लेकर परेशान केंद्र सरकार के जख्मों पर औद्योगिक विकास दर ने नमक छिड़कने का काम किया है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक नवंबर, 2010 में औद्योगिक विकास दर महज 2.7 फीसदी रही है जो पिछले डेढ़ वर्षो का सबसे न्यूनतम स्तर है। नवंबर, 2009 में दर्ज 11.3 फीसदी की औद्योगिक विकास दर के सामने तो यह काफी कम है। कल-कारखानों की यह सुस्ती आने वाले दिनों में सरकार व रिजर्व बैंक की नीतियों पर काफी असर डाल सकती है। सबसे पहले तो इसका असर 25 जनवरी को पेश होने वाली मौद्रिक नीति की मध्य-तिमाही समीक्षा में ही देखने को मिल सकता है। उद्योगों पर मंदी के बादल मंडराते देख रिजर्व बैंक पर यह दबाव बढ़ा है कि वह ब्याज दरों में इजाफा नहीं करे। साथ ही धीरे-धीरे आम बजट 2011-12 बनाने में जुटे वित्त मंत्री पर यह दबाव बनेगा कि वह वित्तीय प्रोत्साहन पैकेज को जारी रखें। आंकड़ों से अलग जा कर देखें तो औद्योगिक सुस्ती कई गंभीर संकेत दे रही है। मसलन, मैन्युफैक्चरिंग की वृद्धि दर इस महीने 12.3 फीसदी से घट कर सिर्फ 2.3 फीसदी रह गई है। चालू वित्त वर्ष के दौरान पहली बार मैन्युफैक्चरिंग उद्योगों पर संकट के बादल दिख रहे हैं। इसी तरह से उपभोग के आधार पर देखें तो उपभोक्ता सामान क्षेत्र में 3.1 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। नवंबर, 2009 में इसमें 10.1 फीसदी की वृद्धि हुई थी। टिकाऊ उपभोक्ता सामान क्षेत्र की वृद्धि दर 36.3 फीसदी से घट कर महज 4.3 फीसदी रह गई है। इससे टीवी, फ्रिज व अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियों की स्थिति समझी जा सकती है। ये आंकड़े साफ बताते हैं कि औद्योगिक मंदी सिर्फ एक-दो जगह तक सिमटी हुई नहीं है, बल्कि यह धीरे-धीरे कई उद्योगों में फैल रही है। सरकारी आंकड़ों में पूरे उद्योग को 38 वर्गो में बांटा जाता है जिसमें से आठ में गिरावट हुई है और सिर्फ दो औद्योगिक वर्गो (चमड़ा व ट्रांसपोर्ट उपकरण) में वृद्धि दर दहाई में रही है। इस संकेत को वित्त मंत्री बखूबी समझ रहे हैं, तभी उन्होंने इस पर गंभीर चिंता जताते हुए कहा है कि हमें स्थिति को संभालने के लिए शीघ्र कदम उठाने होंगे। एक कदम संभवत: वित्तीय प्रोत्साहन पैकेज को जारी रखने के तौर पर हो सकता है। जानकारों के मुताबिक औद्योगिक क्षेत्र के इस बेजान प्रदर्शन के लिए बहुत हद तक आरबीआइ की कठोर मौद्रिक नीतियां भी जिम्मेदार हैं। फिक्की के महासचिव अमित मित्रा के मुताबिक कच्चे माल के महंगा होने और पूंजी की लागत बढ़ने से मैन्युफैक्चरिंग उद्योग दबाव में आया है। यह स्थिति आगे भी जारी रहने की संभावना है। मित्रा ने वित्त मंत्री से तत्काल हस्तक्षेप करते हुए प्रभावित उद्योगों को राहत देने की मांग की है।


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