विश्व बैंक ने दुनिया भर में बढ़ती महंगाई पर चिंता जताई है। बैंक ने कहा है कि संरक्षणवादी नीतियों के बजाए मुक्त बाजार प्रणाली खाद्य पदार्थ की कीमतों में हो रहे उतार-चढ़ाव का समाधन हो सकती है। उन्होंने जी-20 देशों से खाद्यान्न को अपने एजेंडे में सबसे ऊपर रखने का आग्रह भी किया है। विश्व बैंक के प्रमुख रॉबर्ट जोएलिक ने एक समाचार पत्र में लिखे अपने लेख में कहा है कि खाद्य पदार्थो की कीमतों में हो रहे उतार-चढ़ाव पर बाजार को नियंत्रित कर लगाम नहीं लगाया जा सकता है। जोएलिक ने कहा है कि जी-20 के सदस्य देश गरीबों को सशक्त बनाकर पोषकतत्वों से भरपूर खाद्यान्नों की उपलब्धता सुनिश्चित करने की दिशा में आगे बढ़ सकता है। उन्होंने अपने इस लेख में दुनिया के सबसे गरीब लोगों तक खाद्यान्न की उपलब्धता सुनिश्चित करने के नौ मंत्र बताए हैं। उन्होंने कहा है कि गरीब देशों की स्थानीय कीमत और अंतरराष्ट्रीय कीमतों के बीच संबंधों को समझने के लिए अध्ययन की जरूरत है। कंबोडिया में वर्ष 2009 के मध्य के बाद से चावल की कीमतें एक तिहाई बढ़ चुकी हैं। जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसमें 15 प्रतिशत तक की कमी आई है। जोएलिक लिखते हैं कि स्थानीय स्तर पर कीमतें बढ़ने के कई कारण हैं, जैसे परिवहन लागत, फसल की प्रजाति और विनिमय दर हो सकते हैं। उन जिंसों और देशों पर पहले काम करने की जरूरत है, जहां कीमतों में सबसे अधिक उतार-चढ़ाव हो रहा है। उन्होंने खाद्य पदार्थो को निर्यात प्रतिबंध से बाहर रखने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संहिता बनाने का आग्रह भी किया है। निर्यात प्रतिबंधों से खाद्य पदार्थाें की कीमतों में अधिक उतार-चढ़ाव होता है। उन्होंने कहा है कि वर्ष 2011 में मानवीय आधार पर खाद्य पदार्थो की आवाजाही निर्बाध होनी चाहिए। इसके साथ ही आपूर्ति में पारदर्शिता, दीर्घकालिक मौसम भविष्यवाणी, आपदा संभावित क्षेत्रों में आवश्यक वस्तुओं का भंडारण, निर्यात प्रतिबंध और कीमत निर्धारण के विकल्पों की व्यवस्था करने की भी जरूरत है। उन्होंने महंगाई को नियंत्रित करने के लिए सुझाए गए उपायों का जिक्र करते हुए लिखा है कि मौमस बीमा या परिवहन और लागत को कम करने के लिए ईधन कीमतों के लिए हेज की व्यवस्था करने पर भी विचार करना चाहिए।
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